व्यापारियों के विरूद्ध शिकायत पर FIR से पहले हो जांच- डीजीपी

NEWS GURU (लखनऊ) । उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने व्यापारियों , उद्यमियों और निर्दोष व्यक्तियों के विरुद्ध निराधार FIR पंजीकृत न किए जाने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए है । उन्होंने निर्देश के माध्यम से कहा है कि विभिन्न व्यापारिक संगठनों द्वारा समय-समय पर विभिन्न स्तर पर प्रत्यावेदन के माध्यम से यह तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं कि व्यवसायिक विवादों, जो मूलतः सिविल प्रकृति के होते हैं, को आपराधिक रंग देते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठानों, संस्थानों आदि में कोई आकस्मिक घटना / दुर्घटना होने पर प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों के अतिरिक्त मैनेजमेन्ट स्तर के लोगों को भी प्रथम सूचना में नामित कर दिया जाता है, जिनका उस घटना से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। ऐसे में में न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग कर निर्दोष व्यक्तियों, विशेष रूप से उद्यमियों के विरुद्ध निराधार प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत किया जाना शासन की प्रदेश में उद्यमियों को आमंत्रित करने तथा Ease of Doing Business को बढ़ावा देने की नीति के विपरीत है। इस प्रकार की घटनाओं से व्यवसायी उ०प्र० में निवेश करने से हतोत्साहित हो सकते हैं।
डीजीपी ने कहा है कि समय समय पर मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी स्पष्ट निर्देश दिये गये है कि वैवाहिक एवं पारिवारिक विवाद, व्यापारिक अपराध, चिकित्सीय लापरवाही के प्रकरण, भ्रष्टाचार के प्रकरण, ऐसे प्रकरण, जिनमें प्रथम सूचना पंजीकृत कराने में अस्वाभाविक विलम्ब हुआ हो, ऐसे मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करने से पूर्व जाँच करायी जा सकती है।
कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्णित उपरोक्त पाँच श्रेणी के प्रकरणों के सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट प्राप्त होने पर यदि सीधे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली जाती है तो प्रतिवादी पक्ष द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट खंडित करने अथवा विवेचना स्थगित करने के लिए मा० उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिकाएं योजित की जाती है, जिससे मा० न्यायालय का बहुमूल्य समय नष्ट होता है और पुलिस प्रशासनिक मशीनरी पर भी अनावश्यक कार्य का भार बढ़ता है।
उपरोक्त के दृष्टिगत यह युक्तियुक्त पाया जा रहा है कि उपरोक्त वर्णित सभी पाँच प्रकार के प्रकरणों में यदि प्रस्तुत किये गये प्रार्थना पत्र से संज्ञेय अपराध का होना न पाया जाए अथवा संशय की स्थिति हो तो प्रार्थना पत्र में अंकित तथ्यों की जाँच कराकर यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि घटना में संज्ञेय अपराध का होना पाया जा रहा है अथवा नहीं। तत्पश्चात ही प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत की जाए।
डीजीपी ने जारी किए हैं ये निर्देश
डीजीपी नेनिम्नवत् कार्यवाही किए समस्त फील्ड अधिकारियों को निर्देशित किया गया है –
उद्यमियों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों यथा भवन निर्माताओं, फैक्ट्री संचालकों, होटल संचालकों, अस्पताल एवं नर्सिंग होम संचालकों तथा स्कूल/शैक्षिक संस्थाओं के संचालकों के विरुद्ध प्राप्त होने वाले प्रार्थना पत्रों पर प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करने से पूर्व जॉच कर यह सुनिश्चित किया जायेगा कि प्रस्तुत प्रार्थना पत्र-
A- व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता / व्यवसायिक विवाद अथवा सिविल विवादों को आपराधिक स्वरूप देते हुये तो नहीं प्रस्तुत किया गया है।
B- प्रस्तुत किये गये प्रार्थना पत्र से क्या संज्ञेय अपराध का होना प्रमाणिक रूप से स्पष्ट हो रहा है।
C- जाँच के दौरान जाँच अधिकारी द्वारा वादी तथा प्रतिवादी अर्थात उभयपक्षों को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया जायेगा तथा प्रकरण से सम्बन्धित दोनों पक्षों द्वारा उपलब्ध कराये गये अभिलेखों को भी जाँच आख्या के साथ संलग्न किया जायेगा।
डीजीपी कार्यालय की ओर से सभी निर्देशों के अक्षरशः पालन किए जाने के निर्देश दिए गए है ।